adsense code

Monday, October 22, 2007

भूल गए


क्या कभी आपने सोचा है -

सत्ता की चाह में सत्य को भूल गये।
मान की चाह में ज्ञान को भूल गये।
धन की चाह में तन को भूल गये।
सुविधा की चाह में सुख को भूल गये।
साधन की चाह में साध्य को भूल गये।
यश की चाह में ईश को भूल गये।
सपनों की चाह में अपनों को भूल गये।


पूज्य सुधांशु जी महाराज

Saturday, October 13, 2007

आत्मकल्याण के सूत्र


शुन्य के साथ कितने भी शुन्य जोडों लेकिन उनका कोई मूल्य नहीं। इसी प्रकार संसार की सारी भौतिक संपदा आपके पास हो लेकिन परमात्मा के बिना उसका कोई मूल्य नहीं।

उपयोगी है :

(१) भोजन, जो पच जाय।

(२) धन, जो जीवन में काम आए।

(३) रिश्ता, जिसमें प्रेम हो।

भगवान् यदि परिक्षा लेटा है तो पहले योग्यता भी देता है।
वह व्यक्ति धरती की शोभा बनता जो अवसर को पहचाने और जीवन की सबसे कीमती वस्तु समय को व्यर्थ न जाने दें।

एकांत और मौन व्यक्ति को महान बनाता है।

बुराई इसलिए नहीं पनपती कि बुरा करने वाले लोग बढ़ गये हैं वरन इसलिए पनपती है कि उसे सहन करनेवाले लोग बढ़ गये हैं

संगठित होकर किसी महान लक्ष्य को पाने का मूलमंत्र है एक दुसरे को सह लेना।

पूज्य सुधान्शुजी महाराज

भगवान् की बनाई मूर्तियों में भगवान् को खोजें ,स्मरणीय



इन्सान के हाथों से पत्थर से गढी हुई मूर्ति में हमने भगवान को तराशने की कोशिश की लेकिन भगवान के हाथों से बने हुए बिलखते मासूम बच्चों में हम अपने परमात्मा को नहीं देख पाए यह एक दुर्भाग्य है। आज उस भगवान को मासूमों के अन्दर ढूढने की आवश्यकता है। इन मासूम बच्चों की सेवा करते हुए परमात्मा को ढूढने की कोशिश कर।


स्मरणीय

जैसे ऐक पत्थर को तराशने से सुन्दर मूर्ति बन सकती है ऐसे ही कर्मों के सहारे ज़िन्दगी को तराशने से ज़िन्दगी का स्वरूप बहुत सुन्दर बन सकता है।

बडों के प्रति सम्मान की भावना , आत्मीयजनों के प्रति कोमलता ,स्वयं के प्रति निरीक्षण की भावना रखते हुए आत्मचिंतन के शीशे में अपने को रोज निहार।

धर्मदूत
अप्रेल २००६

Friday, October 12, 2007

लगन और द्रढता से मिलती है -सफ़लता




लगन से व्यक्ति गगन तक पहुंच जाता है और द्रढता से चट्टान की भाँती मजबूत बन जाता है। धुन के धनी और द्रढनिश्च्यी, सर्व श्रेष्ठ, धनुधर अर्जुन को चिडिया की आंख की छोटी सी पुतली ही दिखाई दीं अन्य कोई द्रश्य नही दिखा। इसी तरह भगवान् के भगत को दुनिया की हर वस्तु में वह वस्तु न दिखकर जब उसको बनाने वाला भगवान् दिखाई देने लगता है तो भक्ति फलित होने लगती है।

Thursday, October 11, 2007

प्रात: स्मरण


  • जपाकुसुमसंकाशं काश्यपयं महाद्युतिम।
    सर्वपापघ्नं प्रणतोअस्मि दिवाकरम ।।


    करबस्ते लक्ष्मी: कर्मध्ये सरस्वती।।
    कर्मूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करर्द्र्शंम । ।

  • समुन्द्रबस्ते देवी पर्वतस्तनमण्डिते।
    विश्नुपत्नी नमस्तुभ्य पादस्पर्ष क्षमस्व मे ।।


Wednesday, October 10, 2007

इच्छा




किसी
चीज का ध्यान करोगे तो संग पैदा होगा ,

संग से कामना पैदा होगी
कामना से लोभ बढेगा
कामना न पूरी होने पर क्रोध बढेगा
क्रोध से सम्मोहन बढेगा
अच्छे बुरे का होश नहीं रहेगा तथा
अपने स्वरूप का ध्यान नहीं रहेगा
अंत में बुद्धि का विनाश हो जाएगा।

उन्नति का पाथ



आत्मसंशोधन
तथा उन्नति का पाथ

किसी के ह्रदय में व्यर्थ का आघात न करना।

अपने व्यवहार से कभी भी किसी के मन को व्यथा न पहुंचाना।


गुलाब के समान काँटों से क्षत विक्षत होकर भी सभी को सुगंध का दान देना।

किसी की प्रशंसा स्तुति से पिघलना मत एवं
किसी के द्वारा की गई आलोचना से
उबलना मत ,
आलोचना, आत्मसंशोधन तथा उन्नति में सहायता
पहुँचाती है
एवं विवेक बुद्धि को जाग्रत रखती है।

आचार्य सुधांशु जीं महाराज


छायाचित्रमे विश्व जाग्रति मिशन सिंगापुर परिवार - श्रद्धापर्व


बन्धन ,ठोकर

इन्सान अनेकों बंधनों की बेडियों में बंधकर संसार में आता है ! जन्म से ही संघर्ष की शुरूआत हो जाती है ! लेकिन संघर्ष की घड़ी में स्वयं का साहस और प्रभु की प्रेरणा,अपना पुरूषार्थ और प्रभु की प्रारथना से ही सफ़लता का सवेरा प्राप्त होता है !

दुनिया में समझाने के लिए बहुत ग्रन्थ हैं ,समझाने वाले संत भी बहुत हैं और जिंदगी को शिक्षा देने वाली ठोकरें भी बहुत हैं लेकिन दुनिया में फिर भी ऐसे लोग हैं ,जो ठोकरों पर ठोकर खाते रहते हैं ,पाताल में गिरते जाते हैं ,पर अपने आपको संभाल नहीं पाते !